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₹0 से ₹1 करोड़ तक: गांव के लड़के ने खड़ी की मसालों की कंपनी, जानिए कैसे बदली किस्मत

जीरो से करोड़ तक: अंकित गौतम का प्रेरणादायक बिजनेस सफर

Ankit Gautam owner geet masale
Image By - Apna Zila

“ट्रेन की खिड़की से जब मैं अपने अतीत को देख रहा था, तो वह दुनिया मेरी आँखों के सामने तड़प उठी।” ट्रेन की खिड़की पर बैठा अजमेर का युवा उद्यमी अंकित गौतम उसी पल अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख पर पहुंच गया। यह कहानी छोटे शहर और गांव से निकलकर बड़ा मुकाम हासिल करने वालों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

अंकित गौतम का बचपन जसोरखेड़ी (हरियाणा) के एक साधारण परिवार में बीता, लेकिन पिता के रेलवे में काम की वजह से उनका बड़ा होना अजमेर (राजस्थान) में हुआ। डॉक्टर-इंजीनियर नहीं बनना चाहने वाले इस युवक ने बचपन में ही तय कर लिया था कि वह अपना बिजनेस खड़ा करेगा।

पहला कदम और पहला झटका

  • “रोडसाइड रोमियो” फूड स्टॉल: वैशाली नगर में टेंट, कुर्सियाँ और बर्तन घर से लाकर सुबह मंडी से सब्ज़ियाँ खरीदकर खड़ा किया।
  • कमाई: दिन के ₹2,500–3,000 तक की आमदनी।
  • अतिक्रमण का झटका: बिना कोई नोटिस, प्रशासन ने स्टॉल ज़बरदस्ती हटा दिया—सीखा कि दस्तावेज़ हमेशा परफेक्ट होने चाहिए।

दूसरा पड़ाव: पुष्कर रिसोर्ट

अतिक्रमण के दर्द के बाद अंकित ने नए जोश के साथ पुष्कर में “पुष्कर विलेज कैंप” रिसोर्ट लीज़ पर लिया। पहले ₹60,000 एडवांस देकर, फिर बाक़ी किस्तों में भुगतान का वादा करके लीज एग्रीमेंट और फूड लाइसेंसिंग पर पूरी तैयारी की।

  • शून्य से शुरुआत: ऑनलाइन–ऑफलाइन मार्केटिंग की और लोकल गाइड्स को कमीशन दिया।
  • पुष्कर मेला: 15–20 दिन में मेले की आमदनी निकालना टारगेट किया।

माँ की बीमारी ने दी नई राह

नवंबर में अचानक माँ की तबीयत बिगड़ी और उन्हें एडिनोकार्सिनोमा (स्टमक कैंसर) का पता चला। टाटा मेमोरियल में इलाज के लिए मुंबई जाना पड़ा और रिसोर्ट छोड़ना पड़ा। माँ के इलाज के दौरान कैंसर पीड़ितों की लम्बी लाइनें देखकर अंकित ने ठान लिया—“मैं लोगों को मिलावटखोरों के जहर से बचाऊँगा।”

तीसरी शुरुआत: “गीता मसाले”

  • गृह प्रौद्योगिकी: घर के छोटे से कमरे में खुद मसाला पीसा, पैक किया और पैकिंग मशीन के लिए बचत की।
  • डिमांड जनरेशन: दुकानदारों को मुफ़्त सैंपल देकर धीरे-धीरे आवाज़ बनाई।
  • गुणवत्ता और ईमानदारी: मिलावटखोरों के खिलाफ जंग, खुद की पिसाई मशीनिंग और फैक्ट्री सेटअप तक विस्तार।
  • प्रतीक उपलब्धि: पहले 50 किलो/महीना से बढ़कर आज 5,000 किलो/महीना बिक्री।

आज का प्रभाव

  • ₹0 से ₹1 करोड़+ सालाना टर्नओवर तक का सफर।
  • तीन अलग-अलग बिजनेस में मिली सीख—दस्तावेज़ीकरण, दृढ़ संकल्प, गुणवत्ता।
  • “लोकल हीरो” की हैसियत से हजारों युवाओं को प्रेरणा।
  • “Bharat Ke Hero 🌟” प्लेटफ़ॉर्म पर साझा करके और भी लोगों तक कहानी पहुंची।

अंकित गौतम की यह कहानी साबित करती है कि “जहाँ चाह होती है, वहाँ राह होती है।” चाहे पहला प्रयास असफल हो, चाहे व्यक्तिगत दर्द हो—जब जिद और जुनून साथ हों, तो जीरो से करोड़ तक का सफर भी आसान लगता है।

क्या आपके आसपास भी कोई ऐसा “लोकल हीरो” है? उनकी कहानी हमें कमेंट में बताएं और Apna Zila पर प्रकाशित कर हम सबको प्रेरित करें!

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